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माना हैं विकलांग, कर्म हम करते लेकिन / पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'

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माना हैं विकलांग, कर्म हम करते लेकिन।
छू लेंगे आकाश, कभी वह आएगा दिन॥
मौका पाएँ सिर्फ, प्रमाणित कर दें क्षमता।
ढूँढो सकल जहान, नहीं पाओगे समता।
देंगे कल वह प्यार, आज जो करते हैं घिन।
छू लेंगे आकाश, कभी वह आएगा दिन॥
दया नहीं अधिकार, चाहिए केवल मिलना।
पता हमें भरपूर, जहाँ में कैसे खिलना।
अपनी देख उड़ान, नींद सबकी जाए छिन।
छू लेंगे आकाश, कभी वह आएगा दिन॥
धीमी है रफ्तार, मगर चलना है जारी।
मान रहे हैं लोग, मंजिलोँ के अधिकारी।
कभी न होगी पूर्ण, कहानी 'पूतू' के बिन।
छू लेंगे आकाश, कभी वह आएगा दिन॥