भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मानी ब्रह्म बानीं सों पताल जान ठानी चली / रमादेवी
Kavita Kosh से
मानी ब्रह्म बानीं सों पताल जान ठानी चली,
मुक्ति की निसानी धरा चाहत फटीसी है।
आये भई दंग लोप गंग की तरंग देख,
संभु की जटा की छटा धुर लौं अटीसी है॥
देख के अखंड तप गंगा जी प्रचंड 'रमा',
त्याग के घमंड सम्भु सीस से छटीसी है।
भूतपित्र तारन को नर्क से उबारन को,
पन्नगी पिनाकी पग पूजि पलटीसी है॥