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मानुष राग / जितेन्द्र श्रीवास्तव

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धन्यवाद पिता
कि आपने चलना सिखाया

अक्षरों
शब्दों
और चेहरों को पढ़ना सिखाया

धन्यवाद पिता
कि आपने मेंड़ पर बैठना ही नहीं
खेत में उतरना भी सिखाया

बड़े होकर
बड़े-बड़े ओहदों पर पहुँचने वालों की
कहानियाँ ही नहीं सुनाईं
छोटे-छोटे कामों का बड़ा महत्त्व बताया
सिर्फ़ काम कराना नहीं
काम करना भी सिखाया

धन्यवाद पिता
कि आपने मानुष राग सिखाया
बहुत-बहुत धन्यवाद
यह जानते हुए भी
कि पिता और पुत्र के बीच
कोई अर्थ नहीं धन्यवाद का
धन्यवाद
कि आपने कृतज्ञ होना
और धन्यवाद करना सिखाया

धन्यवाद पिता
रोम-रोम से धन्यवाद
कि आपने लेना ही नहीं
उऋण होना भी सिखाया

धन्यवाद
धन्यवाद पिता!!