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मानुस तनमा दुरलभ / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

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मानुस तनमा दुरलभ भैया
मिलै नै बारंबार छै
देवता भी तरसतें रहलै
माँगलौ पर नै पावै छै ।

बड़ोॅ भाग छै हुनकोॅ जग में
नर-तन जौनें पैनें छै
वेद-पुराण, रामायणें गावै
गीता में भी कहनें छै ।

साधन धाम नर-तन ई देही
मुक्ति के दरवाजा छै
जे हेकरा केॅ नैं संभारै
लोक-परलोक नशावै छै ।

पराधीन होय यम के बंधन
दारुण दुख केॅ भोगै छै
बारंबार पछतावै मनवाँ
सिर धूनी केॅ रोवै छै ।

सत्संग में आवी केॅ प्राणी
मनोॅ के मैल दहावै छै
आत्मज्ञान बिना नर भटकै
भवसागर में गिरै छै ।