भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मायरा / 4 / राजस्थानी
Kavita Kosh से
राजस्थानी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
बीरां म्हारां माथा ने रखड़ी ल्याओ सा। म्हारो टीको रतन जड़ाओ सा।
बीरां घणी से छवि म्हारे आज्यो, भावज ने साथ में ल्याओ सा।
सिरदार भतीजा साथे ल्याओ जी म्हारे थै सा।
बीरां म्हारां काना में झूमर ल्याज्यो, म्हारा झाला रतन जड़ाजो सा।
बीरां घणी छवि से म्हारे आजो।
(अंत में) बीरां म्हारे अंग में साड़ी ल्याजो,
म्हारी चून्दड़ पे गोटा लगाओ सा, बीरां घणी छवि से म्हारे आजो सा।