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मायाला / अनामिका अनु
Kavita Kosh से
बैंगनी किताब
हरा बुक मार्क
और भीतर की
वह उफ़्फ़ सी मीठी खटाई
किताब नहीं मायाला<ref>मैंगोस्टीन</ref> थी
बिक रही थी
केरल की उन दुकानों में
जहाँ हर स्वाद मिलता था
झक कर खाने वाले
मोल लाते थे
झोले भर-भर कर
और हंसते शब्द विदा हो लेते थे
हर उस दुकान से
शब्दार्थ
<references/>