मायाविनी / कुमार मंगलम
स्वदेश दीपक की मायाविनी की एक याद
गहरे स्वप्न में
आती है मायाविनी
हिरणी-सी कुलाँचे भरती
मायाविनी चीर विरहिणी है
कुलधरा के खण्डहरों में
करती है इन्तज़ार उस पालीवाल का
जो भागते-भागते मर गया था
सालम सिंह के जुल्मों से
उसकी सखी है रूपमती
और बाज बहादुर दिखता है उस
पालीवाल-सा
मायाविनी ने कहा था
मैंने माण्डू नहीं देखा है
मायाविनी अथक सहचरी है
वियोग के क्षणों में
स्पर्श होता है उसकी आत्मा का
मन के सूने में विचरती है
कि अचानक आत्मा का जासूस कमज़ोर
पड़ जाता है और वो बन जाती है
आत्मा की परछाईं
फ़ासले ऐसे हो जाते हैं कि
शरीर से आत्मा की दूरी बढ़ने लगती है
कि सब अपना बेगाना हो जाता है
उसकी छुवन है काला जादू
छुवन जो मानसिक है
और स्मृतियों की सहचर है
मैं उसे पा लेना चाहता हूँ
जिसे मैंने ही रचा है
उसे पकड़ने का करता हूँ
अन्तहीन निरर्थक प्रयास
वह मुझसे उतनी ही दूर है
जितनी मेरी अभिव्यक्ति ।