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माया नहीं मनुष्य / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
तुम्हें माया नहीं
मनुष्य होना है स्त्री
देह से आजाद होना है
वह देह ही था
जिसके कारण बन्दिनी रही तुम
जादुई महलों और तहखानों में
और मर-खप गये
अनगिनत गरीब चरवाहे
गाते हुए तुम्हें अपने गीतों में
तुमने सीखा ही नहीं जमीन पर
चलना
बस उड़ती रही पतंग की तरह
उनके इशारे पर
और जब कटी तो खत्म हो गयी
जाने क्यों लता कहलाना
इतना भाता है तुम्हें
कि चढ़ भी नहीं पाती
बिना सहारे एक इंच भी
तुम्हें उबरना ही होगा
जादुई फूलों और राजकुमारों के
मोह से
और इस देह से।