भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मारी आ. की याद / बैर्तोल्त ब्रेष्त / उज्ज्वल भट्टाचार्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1

नीला चाँद, सितम्बर का वह दिन
बेर के पेड़ तले छाया हुआ था चैन
मेरी बाँहों में थी कमसिन वो प्यारी
सपनों से भरे थे हमारे नैन

ऊपर फैले शरत के आकाश में
तैर रहा था इक टुकड़ा बादल का
देखता रहा मैं उसे एकटक
पर नज़ारा था वो पल दो पल का

2

तबसे कितनी ही पूर्णमासी और अमावस
आए और आकर चले गए
बेर के पेड़ भी नहीं रहे अब
और पूछते हो तुम, जज़्बात कहाँ गए ?

तो कहता हूँ मैं : मुझे याद नहीं
गो समझ गया मैं तुम्हारा सवाल
पर याद नहीं है उसका चेहरा
हाँ, चूमे थे मैंने उसके गाल

3

वह चूमना भी मैं भूल ही जाता
गर ऊपर न होता बादल का टुकड़ा
याद है वो और याद रहेगा
बेहद उजला था उसका मुखड़ा

क्या पता वहाँ बेर अब भी हैं फलते हों
वो कमसिन, हो चुकी अब सात बच्चों की माँ
पर बादल का टुकड़ा था पल दो पल का
फिर कुछ भी न रहा वहाँ, वो दिख रहा था जहाँ

मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य