भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मालगोवा आम / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देह के भारी
भरे भार के,
मोटे, मालदार,
मालगोवा आम,
अच्छे हैं
पयोधरी उभार के,
शस्य-श्याम
शाद्वली-सँवार के
मीठे, मजेदार,
और दलदार,
ओठ जैसे रसदार

रचनाकाल: १६-०६-१९७६, मद्रास