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माला / कालीकान्त झा ‘बूच’
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सुरभित अहँक सिनेहक माला
जनम - जनम जपि रहब विपटतर
राखू बन्न अपन मधुशाला
देवि, सुखक परबाहि न हमरा
मिलनक अल्पो आहि न हमरा
हम नर दुःखकाटब धरती पर
अपने बनलि रहू सुरवाला
सुन्दरि अहाँ अकाशी गंगा,
हम भूमिक प्यासल भिखमंगा
युग-युग बरू बौरायब मरू मे
अइॅठायब नहि पावन प्याला
सुरभित अहँक सिनेहक माला
नहि श्रृंगार रौद्र हुंकारे
हम एहि पार, अहाँ ओहि पारे
दुहुक बीच कठोर कर्तव्यक-
भरल अथाह भयंकर नाला
सुरभित अहँक सिनेहक माला