भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मालिक आपकी चाय तैयार है / विष्णु नागर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक स्‍त्री
आईने में अपने को देखती है
और पति से पूछती है
'ऐ मैं सुंदर हूं न'
पति कहता है-
'हां सुन्‍दर हो
बहुत सुंदर, प्‍लीज अब जरा चाय तो बना दो न'

'नहीं पहले ठीक से कहो मैं सुंदर हूं
तब चाय बनाऊंगी'
पति कहता है-'कहा न, सुंदर हो, बहुत सुंदर हो
जाओ प्‍लीज अब चाय बना दो'

स्‍त्री अभिमानिनी कहती है( 'नहीं तुमने अभी मन से कहां कहा
मन से कहो तो बनाएंगे
वरना कहे देते हैं कतई नहीं बनाएंगे
हमारे पति की आज की चाय की छुट्टी हो जाएगी'
पति ने इसका कोई जवाब नहीं दिया

वह रोकती रही, लेकिन पति चला गया

रास्‍ते में पति ने सोचा
कि क्‍या वाकई मेरी पत्‍नी सुंदर है
वह किसी से पूछने में शरमाया

उसने पेड़ से पूछा तो कोई जवाब नहीं आया
एक पत्‍ता तक नहीं हिला
खुद पत्‍नी का चेहरा याद किया तो कुछ समझ में नहीं आया

उसने आसमान से पूछा तो वह जरा सा मुस्‍कुराया
उसने शाम को आकर पत्‍नी से कहा-
'हां, वाकई तुम सुंदर हो'

पत्‍नी ने जवाब दिया, मालिक आपकी चाय तैयार है.