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मालूम था / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल

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बरसों तक मानती रही सच
उसे ही
कहते रहे तुम जो भी
कहाँ जान पाई सच को
जिसे छिपाते रहे बार-बार
तुम
बार-बार छिपाते रहे तुम जिस
सच को
कब जानना चाहा मैंने तुम्हारा
अनकहा सच
मालूम था जो
तुम्हें

मालूम था
हमें भी।