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मालूम न था / ऋषभ देव शर्मा
Kavita Kosh से
होठों पर अंगार धरोगे, यह हमको मालूम न था
आँखों से जलधार झरोगे, यह हमको मालूम न था
हमसे जी भर प्यार करोगे, यह तो था मालूम मगर
जी भर अत्याचार करोगे, यह हमको मालूम न था
मधु में डूबी रात और वह, मस्ती का सारा आलम
प्राणों में झंकार भरोगे, यह हमको मालूम न था
घूँघट पट झट ओट हो गया, लज्जा खुद सिमटी सकुची
यों संयम संभार हरोगे, यह हमको मालूम न था
रोम-रोम में स्पर्श स्पर्श से, ज्योति ज्योति को जाग जाग
जन्मों दीपक हार बरोगे, यह हमको मालूम न था
तुम तो थे तैराक साँवरे! तुम कश्ती तुम मांझी थे
हमें डुबो मझधार तरोगे, यह हमको मालूम न था