माल रोड पर झूमती शिमला की रातें हैं / दयानन्द पाण्डेय
तुम्हारी याद है मदिरा में भीगी हुई रातें हैं
माल रोड पर झूमती शिमला की रातें हैं
तुम्हारा ज़िक्र है, तुम्हारा चित्र है मन में बसा
ह्विस्की के नशे में तुम्हारे बाल ही लहराते हैं
तुम्हारा भरा-पुरा गाल है, गाल पर चुंबन है
शिमला के टेढ़े मेढ़े रास्ते हैं शहद-सी बातें हैं
एक गड्ढा है तुम्हारे गाल में, गड्ढे के नीचे तिल
जैसे किसी ऊंचे पहाड़ पर चढ़ाई की बातें हैं
खजुराहो की मूर्तियाँ तुम्हारे आगे बेकार हैं
तुम्हारे साथ गुज़री जो अनगिन नशीली रातें हैं
खजुराहो याद आता है वैसे ही तो रिश्ते नाते हैं
हमारे तुम्हारे बीच उस मधुबन की सौगातें हैं
याद आ रही हो तुम सिनेमा के रील की तरह
और याद में भीगी पिछली तमाम मुलाक़ातें हैं
अभी एक लड़की गुज़री रही है बगल से
किसी हिरणी की तरह उस की कुलांचें हैं
चीड़ों पर चांदनी ठहरी हुई है एक अरसे से
निर्मल वर्मा का शहर है उन की ही बातें हैं
एक सागर भी है शिमला में लहराता हुआ
मस्ती में डूबी बातें और उस की मुलाक़ातें हैं
शराब में डूबी हुई झूमती एक मस्त महफ़िल है
गुफ़्तगू में भूली हुई एक बालम चिरई की बातें हैं
लाल टीन की छत पर बतियाती दो चिड़िया बैठी हैं
बेटियों की तरह आकाश में उड़ जाने की बातें हैं
मुहब्बत अय्यासी नहीं भक्ति का एक पाठ होती है
लोग क्या जानें यह तो मुरली बजइया की बातें हैं
इश्क पाक़ीज़ा बना देता है जीना सिखा देता है
मीरा का भजन है अमीर खुसरो कबीर की बातें हैं
वह घुल गई है मेरी ज़िंदगी में ऐसे जैसे बताशा
बहुत गझिन बहुत हसीन यादों की बारातें हैं
बातें ख़त्म कहाँ होती हैं जब बिछड़े हुए मिल जाएँ
लखनऊ की भूलभुलैया इमाम बाड़ा की बातें हैं
नदी है, नदी की धार है, नाव में हम तुम
दिलकश चांदनी में नहाई काशी की रातें है
रात गुज़री है तुम्हारे सपनों और ख़यालों में
सुबह के चमकते सूरज-सा हम भी इतराते हैं
तुम से मिलने की चाहत और छटपटाहट
जैसे मन में रजनीगंधा के खिल जाने की बातें हैं