बदल बदलकर जालिम अब भेष आ रहे हैं
मासूम सी कली को जिन्दा जला रहे हैं।।
गुड़ियों से खेलती जो गुड़िया थी हमारी
माँ के जिगर का टुकड़ा पापा की थी दुलारी
उसके लहू से आज पापी नहा रहे हैं
वरदी हुई कलंकित खादी भी दागदार
बेखौफ दरिन्दे है हर माँ के गुनहगार
कानून को विवश ये कातिल बना रहे हैं।।
लुटती है बेटियाँ जब होती है सियासत
जनता के रक्षको की मर जाती शराफत
मुजरिम सभी यहाँ पर सम्मान पा रहे हैं॥