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मिटा नहीं तुम्हारे होने का जादू / आलोक श्रीवास्तव-२

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तुम्हारी छवि दीप्त हो उठती है
दुख के इन दिनों में

कहीं नहीं हो तुम
पर तुम्हारे होने का जादू अब भी है

भावना के वे दिन बीत गए
रंग से सराबोर दिशाएँ घुल गई
रात के वीरान रहस्यों में

कोई एक पुकार
खो गई
मिट गया कोमलता का पूरा एक संसार
जीवन दुख की कथाएँ लिखता रहा
जिन हवाओं में तुम्हारे होने का गीत था
उनमें सिर्फ़ वीरानी बची
चैत के पत्तों का गिरना
और धूसर पलाश बचे वसंत के वन में

गहरे दुखों की लकीरें छूट गईं
बदल गया कितना कुछ
पर क्यों नहीं मिटा
तुम्हारे होने का जादू?