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मिट्टी का अनुराग (कविता) / सुभाष काक

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देश प्रेम कहां से उभरता है?
हमारे कूचे कीचड वाले थे
और भय था
बाजार के गुंडे
पीट न लें।
चुप रहना सीखा
अज्ञात भीड में
पिघल जाना।

यह सच है --
पतझड की हवाएं
तीखी और सुहावनी थीं
और नदी के पास
उपवन में भागना
पहाडी से लुढकना
आनन्‍दमयी था।

पुरखों की कहानियां
रोमांचित थीं
उनसे जुडी हुईं
मैंने भी कई कथानक बुने।

पर अन्‍य देशों की भी
अपनी कहानियां हैं
सुन्‍दर घाटियां
पर्वतीय नदियां
सुन्‍दरियां।

अन्‍तर शायद है
बचपन में
मैंने देश की
मिट्‍टी खाई।

यह देश मोह नहीं
मिट्‍टी का अनुराग है।