तुमने हमेशा वही किया
अपने अधिकारों को खूब भोगा
दूसरों के अधिकारों पर 
लगा दी पाबंदी
न चले सड़क पर हम
न अच्छा पहनें 
और न तो पढ़ पायें  
रहें बस गंदी कोठरियों में 
हमारे बच्चे हमारे तालाब 
हमारे कुएँ
कुछ भी तुम्हें बर्दाश्त नहीं
तुम्हारी आँखों की 
किरकिरी हैं हम
तुम्हारी आँखों में पड़ी 
मिट्टी हैं हम
यही मिट्टी 
जब लेती है आकार
गढ़ती है सपने 
बनाती है घरौंदे
देती है समता, बंधुत्व का संदेश
करती है नवसृजन 
उगाती है पौधे
जब भरती है हुंकार
उड़ाती है मीनारें 
गिराती है महल
माना मिट्टी मूक है
पर मिट्टी की ताकत असीम है---