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मिड-डे मील / सुनील श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
(सन्दर्भ : मशरक काण्ड)
आश्चर्य यह नहीं
कि ऐंठ गई उनकी फूल-सी देह
गाज फेंकते मुँह से
मर गए वे
कमसिन हतभागे
स्कूल में परोसा गया था
विषाक्त भोजन
आश्चर्य यह भी नहीं
कि चूहों पर मढ़ा गया
जलजलों का अपराध
हत्यारे करते रहे नाटक
हत्यारों को ढूँढ़ने का
बिलकुल आश्चर्य नहीं
कि इस हादसे का भी हुआ सदुपयोग
चमकाई जाने लगीं
राजनीतिक क़िस्मतें
आंसू पोंछते मसीहाई हाथों ने
छील दिए गाल
आश्चर्य सिर्फ़ यह है
कि अगले दिन फिर
हाथों में लिए थाली
पहुँच गए बच्चे स्कूल
भकोसने लगे
परोसा हुआ ज़हर
कोई आश्चर्य नहीं दरअसल
बस, एक बात है, भाई !
कि जब भूख से औंटाता है पेट
तब नहीं लगता डर
ज़हर खाने से