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मित्र की याद / ज्योतीन्द्र प्रसाद झा 'पंकज'

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निशिदिन आती याद तुम्हारी
निशिदिन आती याद।
सॉंसों की धड़कन में पलता
मीत तुम्हारा प्यार।
आशा के कंपनी में मिलता
स्मृतियों का उपहार।
नित्य उषा बहलाती उर को
देकर तव संवाद।
निशिदिन आती याद तुम्हारी
निशिदिन आती याद।
गाता हूॅं मैं गीत कि जिससे
रीझो तुम मन मीत।
याद दिलाता प्रीति कि
जिससे गा दो फिर से गीत।
जिसकी एक तान पर मेरा
सबकुछ हो बलिहार।
यह न उदासी रह जाए फिर
मीत यही फरियाद।
निशिदिन आती याद तुम्हारी
निशिदिन आती याद।
रोता हूॅं मैं मीत कि जिससे
तुम विह्वल होकर
सबकुछ भूल मुझे अपनाओ
पुनः मुदित होकर।
किन्तु, हाय तुमने तो श्रुति के
बंद कर लिए द्वार।
बचपन का ही खेल समझकर
मीट समेटा प्यार।
निशिदिन आती याद तुम्हारी
निशिदिन आती याद।