भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मिनख : दोय / दुष्यन्त जोशी
Kavita Kosh से
रूंख
फळ देवै
छियां देवै
पौधा
फूल देवै
मै'क फैलावै
धरती
धान देवै
अर नद्यां
पाणी देवै
आपां
प्रकृति सूं सीखां
जीवां नै
मिनख ज्यूं दीखां।