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मिनती से बोलले गउरा देइ, सुनहु महादेव हे / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मिनती<ref>विनती</ref> से बोलले गउरा देइ, सुनहु महादेव हे।
मोरा नइहरवा में जग<ref>यज्ञ</ref> होले, जग देखे जायम<ref>जाऊँगी</ref> हे॥1॥
मिनती से बोलथिन<ref>बोलते हैं</ref> महादेव, सुनहु गउरा देइ हे।
बिना रे नेवतले<ref>निमंत्रित</ref> गउरा जनि<ref>मत, नहीं</ref> जाहु, तोहरो<ref>तुम्हारा</ref> आदर नाहिं हे॥2॥
केकरो<ref>किसका</ref> कहलिया<ref>कहना</ref> गउरा नाहिं कएलन<ref>किया</ref> अपने चलि गेलन हे।
नाहिं चिन्हे<ref>पहचानते हैं</ref> माए बाप, नाहिं चिन्हे नगर के लोगवा हे॥3॥
एक त चिन्हले<ref>पहचाना</ref> बहिनी गाँगो<ref>गंगा बहन</ref> उठि अँकवार<ref>भुजपाश में पकड़कर गले मिना, छाती से लगना। अंकमाल</ref> कइले हे।
बिना रे नेवतले बहिनी आएल, तोहरो आदर नाहिं हे॥4॥
कने<ref>किधर</ref> गेल, किया भेल<ref>क्या हुआ</ref> बराम्हन, अगिनी कुंड खानहु<ref>खोदो</ref> हे।
जब रे बराम्हन कुंड खनलन<ref>खोद दिया</ref> गउरा कूदि पड़लन हे॥5॥
जब रे गउरा कूदि पड़लन, महादेव धावा चढ़लन<ref>चढ़ाई कर दी, धावा बोल दिया</ref> हे।
मिनती से बोललन सासु, सुनहु महादेव हे॥6॥
मोरा घर आजु जग होले<ref>होता है</ref> जग जनि भाँड़हु<ref>नष्ट-भ्रष्ट करो</ref> हे।
गउरा के बदल<ref>बदले में</ref> गउरा देहब, फिनु शिव परिछब<ref>परिछूँगी</ref> हे॥7॥

शब्दार्थ
<references/>