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मिरे फ़िक्र ओ फ़न को नई फ़जा नए बाल-ओ-पर की तलाश है / 'वामिक़' जौनपुरी

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मिरे फ़िक्र ओ फ़न को नई फ़जा नए बाल-ओ-पर की तलाश है
जो क़फ़स को यास के फूँक दे मुझे उस शरर की तलाश है

है अजीब आलम-ए-सर-ख़ुशी न शकेब है न शिकस्तगी
कभी मंज़िलों से गुज़र गए कभी रहगुज़र की तलाश है

मुझे उस जुनूँ की है जुस्तुजू जो चमन को बख़्श दे रंग ओ बू
जो नवेद-ए-फ़स्ल-ए-बहार हो मुझे उस नज़र की तलाश है

मुझे उस सहर की हो क्या ख़ुशी जो हो जुल्मतों में घिरी हुई
मिरी शाम-ए-ग़म को जो लूट ले मुझ उस शहर की तलाश है

यूँ तो कहने के लिए चारागर है मुझे बे-शुमार मिले मगर
जो मिज़ाज-ए-ग़म को समझ सके उसी चारागर की तलाश है

मिरे नासेहा मिरे नुक्ता-चीं तुझे मेरे दिल की ख़बर नहीं
मैं हरीफ़-ए-मसलक-ए-बंदगी तुझे संग-ए-दर की तलाश है

मुझे इश्क़ हुस्न ओ हयात से मुझे रब्त फ़िक्र ओ नशात से
मिरा शेर नग़मा-ए-ज़िंदगी तुझे नौहा-गर की तलाश है

उसे ज़िद कि ‘वामिक़’-ए-शिकवा-गर किसी राज़ से नहो बा-ख़बर
मुझे नाज़ है कि ये दीदा-वार मिरी उम्र भर की तलाश है