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मिलती नहीं है चाल कोई मेरी चाल से / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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मिलती नहीं है चाल कोई मेरी चाल से
रहते हैं लोग दूर इसी इक ख़याल से
मेरे भी सर पे धूप है तेरे भी सर पे धूप
अच्छा नहीं है हाल मेरा तेरे हाल से
खुलने को खुल गया मगर अच्छा नहीं हुआ
जो राज़, राज़, राज़ रहा सालह साल से
संगीत मेरा हो तो तेरा गीत हो कोई
मिल जाएँ सुर से सुर तो मिले ताल ताल से
बाग़ों में आम पक गए, आने लगी है अब
कोयल के कूकने की सदा डाल-डाल से
बाहों से उसने मेरी निकल कर कहा, पकड़
मछली निकल गयी है मछेरे के जाल से
भारत में है अनाज बहुत अब मेरे 'रक़ीब'
कितने ही लोग मरते थे पहले अकाल से