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मिलन / रजनी अनुरागी
Kavita Kosh से
मिलते हो जब तुम
खिल जाता है मन
छूते हो जैसे ही तन
भीतर से उठती है सिहरन
हम और मनुष्य हो जाते हैं
जब होता है मिलन