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मिला के आँख कभी, बेक़रार होने दो / पुष्पेन्द्र ‘पुष्प’

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मिला के आँख कभी, बेक़रार होने दो
मुझे भी लम्स-ए-नज़र का शिकार होने दो

खिज़ां के दौर में बिजली गिरा के क्या हासिल
रुको ! चमन में ज़रा सी बहार होने दो

तमाम उम्र कटी आगही के घेरे में
बड़ी थकन है, ज़रा सा ख़ुमार होने दो

अभी से ख़्वाब में आने की इल्तिजा न करो
मुझे भी नींद के रथ पर सवार होने दो

वो जिसने मार दिया 'पुष्प', आहू-ए-उम्मीद
उसी शिकारी को, अबके शिकार होने दो