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मिली-जुली चलहु चुमावन, सुनहु सिवसंकर हे / मगही
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मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
मिली-जुली चलहु चुमावन, सुनहु सिवसंकर हे।
आजु हुइ राम के बियाह, सुनहु सिवसंकर हे॥1॥
दस-पाँच सखिया बारिय भोरे<ref>कम उम्र की, भोली-भाली मुग्धा नायिका</ref> अउरो बड़ सुन्नर हे।
हाथ लेले सोने के थार<ref>थाली</ref> सुनहु सिवसंकर हे॥2॥
चुमवल मइया कोसिला मइया, अवरो तीनों मइया हे।
आज अजोधेया में उछाह<ref>उत्साह, उत्साह-भरा आनन्द</ref> सुनहु सिवसंकर हे॥3॥
शब्दार्थ
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