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मिल के दरवाज़े / बालकृष्ण काबरा 'एतेश' / कार्ल सैण्डबर्ग

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तुम कभी लौटते नहीं।
मैं करता हूँ गुड-बाई
जब तुम्हें दरवाज़ों के भीतर जाते देखता हूँ,

आशाहीन खुले दरवाज़े तुम्हें बुलाते और इन्तजार करते
फिर तुम्हें काम में लेते - कितने पैसे रोज़ी पर?
निद्राग्रस्त आँखों और उँगलियों के लिए कितने पैसे?

मैं करता हूँ गुड-बाई
क्योंकि मुझे पता है वे पकड़ कर रखते तुम्हारी कलाइयाँ,
अन्धेरे में, ख़ामोशी में, रोज़-ब-रोज़,
और निकालते सारा ख़ून तुम्हारा बून्द-दर-बून्द,
और तुम युवा होने से पहले ही होते हो बूढ़े।

तुम कभी नहीं लौटते।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा 'एतेश'