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मिल गए थे बालो-पर कुछ न कुछ तो होना था / कांतिमोहन 'सोज़'
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मिल गए थे बालो-पर कुछ न कुछ तो होना था ।
माइले-सफ़र तायर कुछ न कुछ तो होना था ।।
आज क्यूँ उदासी है फूल क्यूँ नहीं खिलते
कल मिला था वो हँसकर कुछ न कुछ तो होना था ।
कुछ शबाब कुछ मौसम कुछ शराब कुछ शबनम
इतनी जिंस थीं आख़िर कुछ न कुछ तो होना था ।
हम बहुत पशेमां हैं लब पे आ गया शिकवा
ज़ुल्म हद से था बढ़कर कुछ न कुछ तो होना था ।
तेरी आँख का कहना रिन्द मान भी जाते
शेख था लिए साग़र कुछ न कुछ तो होना था ।
वो हमारे घर आएँ और फिर ठहर जाएँ
इस क़दर क़रीब आकर कुछ न कुछ तो होना था ।
बेदिली से तंग आकर बेरुखी से उकताकर
चल दिए थे सोज़ मगर कुछ न कुछ तो होना था ।।