भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मीठे में जहर / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित
Kavita Kosh से
मीठा खाते हम लोग
फिर भी
मीठा नहीं बोलते
जब भी
बोलते हैं
जहर बोलते हैं
सरकार को कोसते हैं
कि
उसने यह किया
उसने वो किया
कभी नहीं झांकते
अपने गिरबान में
कि
बेटी भी
प्रॉपर्टी में पूरी हकरदार है
लड़का-लड़की
सब बराबर है
भ्रूण हत्या पाप है
बुजुर्गों की सेवा
सर्वोपरि है
अपाहिजों की मदद करो
शोषितों का कल्याण करो
बोलते-बतियाते सब हो
पर
बेशर्म इतने कि
दुर्व्यवहार में अव्वल
नौकरानी से गलत संबंध
टैक्स की चोरी
बच्चों से सीनाजोरी
और
ना जाने क्या-क्या
मीठा खाते हम लोग
जहर घोलते हैं