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मुआफ़ मत करना / अनिरुद्ध उमट
Kavita Kosh से
मुआफ़ मत करना
ज़रा भी
कभी भी
लौटता रहा हूँ
तुम्हारे द्वार से
उलटे पाँव
अगर मैं कभी-कभी
द्वार की स्मृति से सनी
लौट आती रही है
दस्तक को जाती हथेली
सोचते उपाय
मारने के तुम मुझे
थक अभी सोए हो
तुम मुझे आलिंगनबद्ध
चुम्बन करते
डबडबाई आँखों
अपना मरना देखते
अभी जागे हो
तुम को मार मैं कहाँ जाऊँगा
मुआफ़ मत करना
खरा न उतरा
अगर मैं तुम्हारी उम्मीदों पर
मेरी उम्मीदों की बात
फिर कभी