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मुआवजा / अंजू शर्मा
Kavita Kosh से
कविता के बदले
मुआवज़े का अगर चलन हो तो
संभव है मैं मांग बैठूं
मधुमक्खियों से
ताज़ा शहद
कि भिगो सकूँ
कुछ शब्दों को इसमें,
ताकि विदा कर सकूँ कविताओं से
कम-से -कम थोड़ी सी तो तल्खी,
या मैं मांग सकती हूँ कुछ नए शब्द भी
जिन्हें मैं प्रयोग कर सकूँ,
अपनी कविताओं में
दुःख,
छलावे,
प्रतिकार
या प्रतिरोध के बदले,
आपके लिए यह हैरत का सबब होगा
अगर मैं मांग रख दूँ कुछ डिब्बों की
जिनमें कैद कर सकूँ उन स्त्रियों के आंसू
जो गाहे-बगाहे
सुबक उठती हैं मेरी कविताओं में
हाँ, मुझे उनकी खामोश,
घुटी चीखों वाले डिब्बे को
दफ़्न करने के लिए एक माकूल
जगह की दरकार है.