भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुकरी / कैलाश झा ‘किंकर’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पीयै बीड़ी मांगै सिगरेट
सबदिन गमछा आय ब्रासलेट
उछलै कूदै पँच-पँच हाथ
की सखि दुल्हा ?
नै बारात।


आबै छै तेॅ स्वर्गे लागै
कामदेव भी मन केॅ जागै
मह-मह महकै फूल अनन्त
की सखि साजन ?
नहीं बसन्त।


रात-रात भर नीन्द उड़ाबै
ओकरा कारण चैन नै आबै
खाना-पीना सब बेकार
की सखि चिन्ता ?
नै सखि प्यार।


महकै छै से दुनिया जानै
दिग्गज भी पाबै लेॅ ठानै
लागै जेना कोनो शबाब
की सखि दारू ?
नहीं गुलाब।