मुक्तक-11 / रंजना वर्मा
कह रहा है मन जरा  सा प्यार तो कर लें
श्याम चरणों मे तनिक मनुहार तो कर लें।
मोह का बन्धन  सदा  ही  व्यग्र  है करता 
दूर  मन  के  मोह  से  संसार  तो  कर  लें।।
 
सुप्त  सकल  विवेक था  संचेतना पर शुद्ध
आचरण सारे अलौकिक बुद्धि परम् प्रबुद्ध।
कष्ट से  पूरित  जगत  कैसे  मिले  निस्तार
गेह तज  सिद्धार्थ  निकले  हो गये वो बुद्ध।।
ईश को पहला नमन है जिंदगी
आग है शीतल पवन है जिंदगी।
अंजुमन है प्रेम के एहसास की
फूल कांटों का चमन है जिंदगी।।
लबों पर हो तबस्सुम  खुशी भी भरपूर हो जाये
हर इक गम जिन्दगानी से स्वयं ही दूर हो जाये।
न हो आँसू किसी भी आंख में  आहें न होठों पर
खुदा  को  इल्तिज़ा  मेरी  अगर  मंजूर  हो जाये।
भोर की पहली  किरन  है जिंदगी
प्यार से लिक्खा सुखन है जिंदगी।
ओस की इक बून्द सी है फूल पर
एक  कांटे  की  चुभन  है  जिंदगी।।
 
	
	

