जख़्म  देते  रहे  जख़्म  पाते रहे 
हठ  हमेशा  हमारा  निभाते  रहे।
लोग कितने खड़े दर्द की राह में
क्यों हमे  ही  हमेशा  बुलाते रहे।।
सुना जो हृदय का  बहुत क्रूर है
सभी के  दिलों  से  बहुत  दूर है।
भरो आत्मा में विमल स्नेह जल
खड़ा सामने  जो  वो  मजबूर है।।
दया के लिये  स्नेह धन चाहिये 
उड़ें  मुक्त  नीला  गगन   चाहिये।
न  व्यवहार में  क्रूरता  हो  कभी
दयाभाव मन में सघन चाहिये।।
आप ने  काम  मेरा   किया  शुक्रिया
नाम मेरा न फिर  भी  लिया शुक्रिया।
बिन कहे इक नजर भी न डाली इधर
जख्म  को मेरे  ताजा  किया शुक्रिया।।
अब जिद छोड़ो बात हमारी मानो तो
छोड़ जमाना हम को अपना जानो तो।
पूरे   सब   अरमान  तुम्हारे  भी  होंगे
कुछ करने की  पहले  मन में ठानो तो।।