पत्थर की दुनियां है सारी अब इसमें भगवान कहाँ
जहाँ स्वार्थ में डूबे हैं सब अपनी  ही  पहचान वहाँ।
ऐसे में भी  मातृभूमि  की  खातिर  प्राण लुटा दे जो
दीपशिखा सा  जलने  वाला  है  कोई  इंसान  यहाँ।।
चरण  माँ बाप  के छूकर नमन जो रोज़ करते हैं
हैं मिटते  पाप  सारे  आशिषा  के फूल  झरते हैं।
बसे  माता पिता  के  चरण  में ही  तीर्थ  हैं सारे
जरूरत ईश की  क्या शीश जब ये हाथ धरते हैं।।
धैर्य की गागर छलकने दीजिये
अश्रुमुक्तायें ढलकने  दीजिये।
नयन पी लेंगें  समंदर  पीर का
सूर्य आँखों में झलकने दीजिये।।
सुधा सम बोल सब को ही लुभाते
भला कटु बोल हैं  किस को सुहाते ?
सरस स्वर स्नेह के मधु में डुबाती
तभी तो  कोकिला  के  बोल  भाते।।
सजी  जो  स्वर्ण मुक्ता  से  वो  मूरत  भी  तुम्हारी  है
जिसे  नित  अर्घ्य  देते  हैं  वो  सूरत  भी  तुम्हारी  है।
बहुत दिन रह  लिये  घनश्याम धन  के  मंदिरों में तुम
जगत के दीनदुखियों  बीच  अब  रहने  की बारी है।।