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मुक्तक.. / मोहम्मद सद्दीक
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सबको रब तो एक है
हम में एको नाईं
जै सब में एको हुवै
रब होसी सब मांई।।
रब की ढब सूं बात कर
बात करै कर ध्यान
मन मन्तर रो मोलकर
मन हीरां री खान।।
पो फाट्यां छब आव-सी
मान सरोवर घाट
दिवले री लौ रात भर
जिणरी जोवै बाट।।
मैं खींचूं तूं खींच मत
जै खींची खिंच जाय
लाग्यां पाछै ना बुझै
जै लागैली लाय।
आखे जग में जोविया
मिल्या ना मनरा गीत
घर बैठ्यां बै आवसी
जग री उल्टी रीत।।
बिल्ली दूध रूखाळी करसी
सांप फिरेला से‘रां में
हणै आकड़ा मीठा लागै
आम लागसी केरां में।।