भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुक्तक संग्रह-3 / विशाल समर्पित
Kavita Kosh से
मुस्कुराकर दहे इक वचन के लिए
विरह हँस कर सहे इक वचन के लिए
सात फेरों के सातों वचन भूलकर
राम वन में रहे इक वचन के लिए
अनवरत तुम बहे इक वचन के लिए
कष्ट अनगिन सहे इक वचन के लिए
लाज लुटती रही आँख के सामने
कर्ण तुम चुप रहे इक वचन के लिए
कुछ नहीं था विषम इक वचन के लिए
पथ सभी थे सुगम इक वचन के लिए
इक वचन तक मुझे तुम नहीं दे सके
रात - दिन रोए हम इक वचन के लिए
धूल सपनों की उड़ाकर लौट आए
फूल मूरत पर चढ़ाकर लौट आए
प्यार पर यह जग हँसे मत इसलिए
अश्रु नदिया में बहाकर लौट आए
नेह का वैभव लुटाकर लौट आए
मंदिरों मे सिर झुकाकर लौट आए
हो सके तो माफ़ करना हम तुम्हारे
आस के दीपक बुझाकर लौट आए