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मुक्तक / राजकमल चौधरी
Kavita Kosh से
नहुँए-नहुँए पहिने बरसइए मेह
संकोचहिसँ आरम्भित होइए नेह
नहिनेँ त लोक कहइए, मिलैछ हृदयसँ हृदय,
मुदा, क्रमशः नइँ सँभरि पबइए देह
प्रेम एहेन भेल, तोड़ि देलक सभ लाज
कहलउँ-आन कथूसँ हमरा नइँए काज
छोड़ि प्रशस्त राजपथ, अन्हार एकपेड़िया घए चललउँ
मुदा, छेकि लेलक रस्ता सबल समाज
आब सहब नइँ हम ई बताह संसार
बहन हएत नइँ हमरासँ मर्यादा-भार
स्वप्न बनल अछि जे जुग-जुगसँ हमरा अन्तरमे,
इच्छा अछि तकरा आइ करब साकार
आब नइँ पोथी-पतरा वेद-पुरान
बिसरि रहल छी तप-पूजा, जप-ध्यान
उतरि रहल अछि गगनक पथसँ हमर मेनका अप्सरि
हे आत्मा-विश्वामित्र, लिख स्वागत के गान