भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुक्तिबोध के लिए / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
जब हवा ने सूचना दी मर गया वह
चील, कौवे. गिद्ध, कुत्ते आ गए
मार के मारे हुए को खा गए
जाते-जाते एक दावत कर गया वह !
मर गया वह ! !
मांस की तारीफ़ सुनकर चील से,
हड्डियों की श्वान से — तफ़सील से,
काक बोला — बन्धु ! उसकी आँत में
वह मज़ा पाया, न पाया भात में;
गिद्ध ने फिर सिद्ध मुद्रा में कहा —
वह हमारा पहरुआ था, पहरुआ !
दूसरे दिन पत्र में छापा गया —
’एक आवश्यक कमी को भर गया वह !’
मर गया वह ! !