मुक्ति के प्रश्न पर / येव्गेनी येव्तुशेंको / मदन केशरी
एक बेहद लम्बी कविता ’स्टैचू ऑफ़ लिबर्टी की त्वचा के नीचे” का सिर्फ़ ’प्रस्तावना’ वाला अंश, जिसका शीर्षक अँग्रेज़ी में अनुवाद करने वाले अनुवादकों ने बदल दिया है ।
दख़ाव की राख मेरे पाँवों में है,
जलते मांस की गन्ध से बोझिल धुआँ मेरे भीतर इकट्ठा हो रहा,
मिसाइल और बोनेट
चुभ रहे हैं मेरे नाख़ूनों में ।
अपनी प्रेमिका की एक बिखरी लट मैं सहलाऊँगा
और ख़ुद भी धुएँ में लिपटा जलने लगूँगा,
जैसे सलीब पर बिंधा हुआ ईसा,
जब रात में बमवर्षक ईसा की सन्तानों को ख़त्म करने पर तत्पर हों ।
एक आकस्मिक विस्फोट के साथ काँपता है मेरा शरीर,
मानो वियतनाम पर अभी-अभी कोई बम गिरा हो ।
मेरी पीठ और पसलियों को चीरती
बर्लिन की दीवार गुज़रती है ।
आप मुझसे मुक्ति की बात करते हैं ?
बमों से आच्छादित आकाश के नीचे, यह एक खोखला प्रश्न है ।
अपने समय के बन्धनों से मुक्त होना शर्म की बात है,
समय का दास होने से सौ गुना अधिक शर्मनाक ।
हाँ, मैं ताशकन्द की स्त्रियों की नियति की बेड़ियों में जकड़ा हूँ,
और जकड़ा हूँ डलास की चीख़ों और पेकिंग के नारों के लोहे में !
बन्धक हूँ मैं वियतनाम की उन विधवाओं और रूस की औरतों की स्थिति का,
जिनकी आँखों पर पट्टी और बग़ल में फावड़े हैं ।
हाँ, मैं पूश्किन और ब्लोक से मुक्त नहीं,
न मेरीलैण्ड राज्य या ज़ीमा स्टेशन से ।
मुक्त नहीं मैं शैतान से, और न ईश्वर से ।
न पृथ्वी के सौन्दर्य से, न इसकी विष्ठा की गन्ध से ।
मैं बँधा हूँ उस प्यास से जो चाहती है सोखकर लोप कर देना.
दुनिया के समस्त विवादियों और हत्यारों की सोच ।
बँधा हूँ मैं उस सम्मान से जिसका लक्ष्य है करना
दुनिया के सारे हरामज़ादों का अन्त ।
और फिर सम्भव है कि लोग मुझे प्यार करें इस कारण
कि मैं सारी ज़िन्दगी इस प्रयास में लगा रहा
(जिसके अनगिनत उदाहरण मौजूद हैं इस लौह युग में)
कि मुक्ति संघर्ष के सन्दर्भ में मिले
दासता को एक नया अर्थ ।
1968
सन्दर्भ :
म्यूनिख के समीप नाज़ी यातना शिविर का स्थल, जहाँ विभिन्न आँकड़ों के अनुसार लगभग दो लाख लोगों को तरह-तरह की शारीरिक यातनाएँ दी गईं और फिर नष्ट किया गया । 10 जनवरी 1960 के ‘सण्डे एक्सप्रेस’ में प्रकाशित स्टेव गार्डनर की रपट के मुताबिक यह संख्या 2,30,000 है; मार्टिन नीलोमर, जो स्वयं दख़ाव में बन्दी था, द्वारा दिए गए 1945 के दख़ाव स्थित एक अभिलेख के सन्दर्भ के आधार पर वहाँ नाज़ियों ने 2,38,756 लोगों का संहार किया था ।
अनुवादक की टिप्पणी :
कविता एक से अधिक अंग्रेज़ी अनुवादों पर आधारित है, ताकि कविता की अन्तर-वस्तु अपने मूल अर्थ और सन्दर्भ के अधिक से अधिक समीप रहे. दो भाषाओं की अलग चरित्र-विशिष्टता के कारण कहीं-कहीं काव्य-अभिव्यक्ति बदल दी गई हैं ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मदन केशरी
लीजिए, अब यही कविता अँग्रेज़ी अनुवाद में पढ़िए
Yevgeny Yevtushenko
On The Question Of Freedom
Dachau’s ashes burn my feet
The asphalt smokes under me
Warheads & bayonets stuck
under my nails
I’ll stroke a stray strand of my beloved’s hair
And I myself shall smoke
crucified Christ-like on wings of bombers
flying through this night to kill Christ’s kids
My skin trembles with explosions
as if it were Vietnam
and breaking my back and ribs
the Berlin Wall runs through me
You talk to me of freedom? Empty question
under umbrellas of bombs in the sky
It’s a disgrace to be free of your own age
A hundred times more shameful than to be its slave
Yes I’m enslaved to Tashkent women
and to Dallas bullets and Peking slogans
and Vietnam widows and Russian women
with picks beside the tracks and kerchiefs over their eyes
Yes I’m not free of Pushkin and Blok
Not free of the State of Maryland and Zima Station
Not free of the Devil and God
Not free of earth’s beauty and its shit
Yes I’m enslaved to a thirst for taking a wet-mop
to the heads of all the bickerers & butchers of the world
Yes I’m enslaved to the honor of busting the mugs
of all the bastards on earth
And maybe I’ll be loved by the people for this
For spending my life
(not without precedent in this iron age)
glorifying unfreedom from
the true struggle for freedom
1968
Translated by Lawrence Ferlinghetti with Anthony Kahn
लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
Евгения Евтушенко
Под кожей статуи Свободы
Поэма
Пролог
Зола Дахау жжёт мне до сих пор подмётки.
Дымятся подо мной асфальт или паркет.
Как гвозди палачей, мне всажены под ногти
неправые штыки и острия ракет.
Я глажу по почам любимой сонный локон,
а сам курю, курю, и это неспроста.
Я распят, как Христос, на крыльях самолетов,
летящих в эту ночь бомбить детей Христа.
Вы о свободе мне! Досужее позерство
под сенью роковой висящих в небе бомб.
От века своего свободным быть позорно,
позорней во сто крат, чем быть его рабом.
На миллионах лиц моя судьба и драма,
на миллионах рук стучит мой личный пульс.
Да, несвободен я от матерей Вьетнама,
от камбоджийских вдов и от далласских пуль.
Да, несвободен я от Пушкина и Блока,
от штата Мэриленд, от станции Зима.
Да, несвободен я от дьявола и бога,
от красоты земли и от её дерьма.
Да, несвободен я от жажды мокрой шваброй
пройтись по головам среди грызни, резни.
Да, несвободен я от чести в морду шваркнуть
всем в мире сволочам, что сволочи они.
И может, буду тем любезен я народу,
что прожил жизнь, борясь, - не попросту скорбя
что в мой жестокий век восславил несвободу
от праведной борьбы, свобода, за тебя...
1968