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मुक्त हास / उर्मिल सत्यभूषण
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कितना सुंदर है मुक्त हास
पायल की रूनझुन
का आभास
देता, गद्गद् करता
भरता मिठास
रक्तिम कपोल
खिलते से फूल, मुखड़े के कूल
दिपते अधरों
पर दंत विलास
अरे! गुलाबी मुक्त हास।
चक्षु के जलते द्वीप द्वय
मस्तक हो उठता महिमामय
तुम जब किल-किल सा
हंसती हो
किरणें फैलाती आस-पास
सौन्दर्य समाया हंसी में
औदार्य है छाया हंसी में
कितनी कालिख धो देता है
यह दीप्त अधर
का शुचि प्रकाश
झरने सा झरता
मधुर हास।