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मुखै ऐथर सौ चरेतर करदीं लोग / नेत्र सिंह असवाल
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मुखै ऐथर सौ चरेतर करदीं लोग
पीठ पीछ सर्र , भूलि जैन्दि लोग I
गाळि दियांला , नुँना कि म्वरदा
फिर भी रोज नई, गाळि दिंदि लोग I
ऊंस चट्याँन , तीस नि जांदी
तीस बढ़ाणौ , ऊंस पिंदी लोग
म्वरणु भजुणु अब आम बात छ
बस गीत मुंड हलैअ , मिसांड रंदी लोग I
उज्याड़ बाड़ खांद , चुप द्यखदा रंदी लोग
निगुसें का ढांगा थैं , कच्यांद रंदी लोग।