भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुखौटा/ सजीव सारथी
Kavita Kosh से
पहचान लेता है चेहरे में छुपा चेहरा - मुखौटा,
मुश्तैद है, तपाक से बदल देता है चेहरा - मुखौटा।
कहकहों में छुपा लेता है, अश्कों का समुन्दर,
होशियार है, ढांप देता है सच का चेहरा - मुखौटा।
बड़े-छोटे लोगों से, मिलने के आदाब जुदा होते हैं,
समझता है खूब, वक्त-ओ-हालात का चेहरा - मुखौटा।
देखता है क्यों हैरान होकर, आइना मुझे रोज,
ढूँढ़ता है, मुखौटों के शहर में एक चेहरा - मुखौटा।