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मुख, बाहू, जंघा, चरण / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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(राग देस)
मुख, बाहू, जंघा, चरण अपने-अपने स्थान।
एक देहके अंग हैं, निज-निज कार्य प्रधान॥
क्षेत्र-कार्य सबके पृथक्, किंतु महत्व समान।
सबकी आवश्यकता सदा, सबके कार्य महान॥
त्यों ही एक समाजके चार अंग सुख-खान॥
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुचि शूद्र धर्म-मतिमान।
ज्ञानार्जन कर विप्र नित, वितरण करता ज्ञान॥
क्षत्रिय रक्षा-रत सतत शूरवीर बलवान॥
वैश्य न्यायसे धन कमा, देता सबको दान।
शूद्र नित्य श्रम-दान कर, करता अति कल्याण॥
एक समाज-शरीर-हित चारों हैं वरदान।
प्रभुसे चारों ही बने, चारोंमें भगवान॥