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मुगल गार्डन / राजी सेठ
Kavita Kosh से
हमने मान लिया
फूल तुम्हारे हैं
फल तुम्हारे हैं
मखमली दूब तुम्हारी है
संतरी तुम्हारे हैं
मान लिया
उस चौहद्दी के बीच का आसमान
तुम्हारा है
सरहदों से टकरा कर आती हवा
तुम्हारी है
तुम भी जान लो
जड़ें हमारी हैं
खाद हमारी हैं
तुम्हें चौहद्दी भर धूप दे देने वाला
आकाश हमारा है
प्रकाश हमारा है
ढलावों से बहता आता पानी हमारा है
बीजों को लाद लाती हवा हमारी है
शेष सारी धरा हमारी है।