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मुझको अंधकार चुनने दो / स्वाति मेलकानी
Kavita Kosh से
मुझमें यायावरी अभी तक शेष बची है
मेरी सीमाओं का कोई अंत नहीं है।
इस जीवन के पार नये जीवन खोजूँगी
अंधकार में घुलकर अभी और भटकूँगी।
तुम सूरज हो किंतु अभी तक
ना ला पाए प्रकाश मुझ तक
मैं खाली थी, मैं खाली हूँ
और रहूँगी जाने कब तक।
जब जाना हो एक अंधेरे से दूजे तक
तो क्यों अब मैं रहूँ भयाकुल
खो जाने से।
अपनी किरणें मोड़ो चाहे और दिशा को
मुझको चुन लेने दो मेरे अंधकार को।
है प्रचण्ड आलोक तुम्हारा
जग कहता है
किंतु मेरी आँखों ने भी
जग को देखा है।
और देखा है
प्रकाश पुंजों का कोलाहल
पान किया है उनका
ऊसर प्रेम हलाहल।
हो न बीज, ना भूमि
किसी जीवन-पौंधे की
तो फिर कैसा जीवन
कैसा जीवन का भ्रम
अंधकार से संघर्षों का रहे सतत क्रम।