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मुझको इंकार आ गया शायद / अमित

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उनको अब प्यार आ गया शायद
मुझको इंकार आ गया शायद

एक बेचैन सी ख़मोशी है
बक्ते-बीमार आ गया शायद

कुछ चहल-पलह है ख़ाकी-ख़ाकी
कोई त्योहार आ गया शायद

होश गु़म और लुटे-लुटे चेहरे
कोई बाज़ार आ गया शायद

खून की बू सी अभी आई है
अपना अख़बार आ गया शायद