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मुझको यह विश्वास नहीं है / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
आज सभी हैं पास तुम्हारे कोई मेरे पास नहीं है।
लेकिन कल भी ऐसा होगा मुझको यह विश्वास नहीं है।
तुम चाहो तो चंदा निकले
तुम चाहो तो सूरज आये।
पवन तुम्हारी अनुमति के बिन
कोई पत्ता नहीं डुलाये।
आज सभी हैं दास तुम्हारे कोई मेरा दास नहीं है।
लेकिन कल भी ऐसा होगा मुझको यह विश्वास नहीं है।
लिखते लोग प्रशस्ति तुम्हारी
जगह-जगह पर हों चर्चायें।
और तुम्हारे अभिनन्दन में
आयोजित हों रोज़ सभायें।
आज सभी हैं ख़ास तुम्हारे कोई मेरा ख़ास नहीं है।
लेकिन कल भी ऐसा होगा मुझको यह विश्वास नहीं है।
चाहें जैसा भी तुम बोलो
आज सभी हो जाते राजी.
कोई पीसे कोई काटे
तुम्हीं जीतते हो हर बाज़ी।
आज सभी हैं ताश तुम्हारे कोई मेरा ताश नहीं है।
लेकिन कल भी ऐसा होगा मुझको यह विश्वास नहीं है।